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Friday, September 7, 2012

मनुष्य के तन में

मनुष्य के तन में राक्षसरूपी अनेक विकार,,वासनाएं विराजमान होती हैं और ये ऐसी दलदली जमीन की भांति होते हैं कि अगर व्यक्ति एक बार इनको हवा दे तो फिर इनसे छुटकारा नहीं मिलता बल्कि वह और गहराई में चला जाता है.. दुर्गुण,,दुर्व्यसन और विकार रूपी राक्षसों के ऊपर काबू करके अपना विस्तार कीजिए..जीवन के किसी भी क्षेत्र में अपने आपको कमजोर मत बनाओ..कहीं भी हताश होकर,,निराश होकर स्वयं को चोट मत पहुँचाओ..जीवन इसलिए मिला है कि हम उस मंजिल पर पहुँच जाएँ जहाँ पहुँचने के बाद कोई मंजिल शेष नहीं बचती..हम उस परम तक पहुँचने के लिए आये हैं जहाँ खुशियाँ ही खुशियाँ हैं..सुधांशुजी महाराज

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